नारी और नौकरी - लेखनी प्रतियोगिता -31-May-2022
एक दिन मन में आया एक विचार
नारी की नौकरी क्यों ख़त्म न होती
रहती भले ही घर पर गृहणी बनकर
पर कोल्हू की तरह सदा लगी रहती।
बचपन से ये सवाल सदा मुझे सताते
नौ घंटे की नौकरी से थक पिता आते
घर आकर माँ पर अपना हुकुम चलाते
घर खर्च देकर उन पर अहसान जताते।
भैया कॉलेज से आकर बैग ऐसे फ़ेंके
उसके जूते-मोज़े के भी माँ ने लिए ठेके
खाने में वह सबके लिए गरम रोटी सेंके
चले माँ अनवरत बिन कदमों को रोके।
माँ निरंतर काम करके भी मुँह न खोले
सबकी बातों को वह मुस्कुराकर सह ले
माँ बिन स्वार्थ नौकर बन दिन भर डोले
सहिष्णु बन दिल के दर्द कभी न बोले।
बेटी को बचपन से ये सिखलाया जाता
हो पराया धन हर पल समझाया जाता
हो काम में निपुण याद दिलाया जाता
बेटे से काम में हाथ न लगवाया जाता।
बेटी जीवन से ही शुरू होती है नौकरी
नारी के जीवन के अंत तक चलती रही
इस नौकरी हेतु अपना अस्तित्व भी भूली
मिला न प्रतिदान मिली तो तानों की सूली।
सोचती हूँ क्या दफ़्तर में जो करते काम
घर जाकर बिस्तर पर लेट करते आराम
उनकी नौकरी को ही क्यों मिले सम्मान
घर संभालने की नौकरी है क्या आसान।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Shrishti pandey
01-Jun-2022 08:44 PM
Nice
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Satvinder Singh
01-Jun-2022 12:04 PM
Nice Creation
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Dr. Arpita Agrawal
01-Jun-2022 02:25 PM
Thank you so much 🙏🏻
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Reyaan
01-Jun-2022 11:28 AM
Nice 👌
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